| Char Dham Yatra – Yamuntori, Day 8 |


आँठवा दिन–यमुनोत्री दर्शन

पहाड़ो के रास्ते का आंनद लेते।और हर जगह का महत्व जानते हुऐ।हम कल आ पहुँचे।जानकचट्टी।।ये वो स्थान है।जहाँ से यात्री आगे की छह किलोमीटर पैदल यात्रा करते हैं।क्योंकि आगे गाड़ी नही जा सकती।यहाँ से आगे धोड़ा,पालकी,पीठू,के साथ आगे बढ़ना पड़ता है।जो कि थोड़ा आंनदमय,थोड़ा थकान भरा रास्ता है।चलो आगे बढ़ते हैं।

यमुनोत्री पैदल मार्ग

अब हाथ में संभालो एक लकड़ी। कंधे पर डाल लो बैग और एकदम खड़ी चढ़ाई पार करने के लिए यमुनोत्री की ओर रवाना हो चलो।जिसको घोड़ा करना हैै कर लो,जिसको पालकी पर आना है वो पालकी कर ले। दुर्गम रास्ते, कठिन चढ़ाई। सच ही तो है कि चार धाम की यात्रा आसान नहीं। धर्म के प्रति लोगों की आस्था के आगे यह मुश्किलें,बहुत छोटी नजर आती हैं। स्त्री-पुरुष बुजुर्ग-नौजवान, बच्चे, यहां तक की दूधमुंहे बच्चों को लेकर भी लोग चढ़ते हैं। संकरे रास्ते में घोड़े पालकी वाले भी साथ चलते हैं,जिससे पैदल यात्रियों को काफी कष्ट उठाना पड़ता है।सुंदर प्राकृति के नजारे,विभिन्न प्रकार की वनस्पति,बड़े,बड़े देवदार के पेड़,उनमे से आती ठण्डी,हवाएं,कहीं से पेड़ों के बीच बीच जांककर दिखते बर्फ से ढके पहाड़ इन नजारों के आगे मुशिकल रास्ते भी आसान हो जाते है।ये बिल्कुल वैसा अनुभव है।जब जीवन मे इसांन अपने जीवन के हालात से थक कर रुक जाता है।और समय भगवान या गुरु आकर उसका हाथ थाम ले।तो उसके जीवन की हर थकान उतर जाती है।और पूरी ऊर्जा विश्वास के साथ इसांन आगे बढ़ने लगता है।उसी प्रकार प्रकृति के ये नजारे इतने मनमोहक हैं,कि थकान आने पे,ये अपनी ऊर्जा से किसी के कदम रुकने नही देते।पर उसके लिए जरूरी है।आप इस प्रकृति से बात करना सीख जाऐं तभी इसके स्वर को सुना जा सकता हैै।जो अपनी मीठी स्वर से आपको कहती है।मुझे जानो मै ही वो दर्शन हूँ।जिसको तुम पाना चाहते हो।मै ही परमात्मा हूं,जिसकी खोज मे तुम आगे बढ़ रहे हो ये स्वर प्रकृति के आपको आंनद से भर देंगे।और परमात्मा को आप सर्वत्र देख पाएंगे।

यमुनोत्री मंदिर दर्शन

तीन घंटे के मुश्किल भरे रास्ते पार करके जैसे ही ऊपर पहुंचते है।तो यमुना जी का अति पावन रूप देखने को मिलता है। पहाड़ों की ऊंचाइयों पर बर्फ ही बर्फ नजर आने लगती है।दूर से ही पीले रंग का गुंबद नजर आता हैै।वो ही माँ यमुना जी का मंदिर है, यही गुंबदनुमा जगह युमनोत्री धाम है। मंदिर के बिल्कुल सामने और दूसरी ओर यमुनाजी बह रही है। पहाड़ों से आती यमुना की धारा, हरे भरे पेड़ों से घिरी वादियों में यमुना अति सुंदर और ममतामयी नजर आती है।अकाल मृत्यु के भय से बचने और मोक्ष के लिए युमनोत्री में स्नान किया जाता है।प्रकृति की अनसुलझी कहानी है,जो सुनने और सोचने में भी आंनदित लगती है। एक तरफ ठंड़ी युमनाजी और दूसरी ओर उबलता हुआ पानी। यहां एक कुण्ड है जो सूर्य कुण्ड के नाम से जाना जाता है। जिसका पानी गर्म है। उसकी भाप को देखकर ही गर्माहट का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहां आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसमें स्नान करता है। इसमें स्नान करते ही सारी थकान दूर हो जाती है। इसकी गर्माहट का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि इसमें चावल को एक पोटली में डालकर पानी में डालने से कुछ ही मिनटों में वे पक कर तैयार हो जाते हैं। यहाँ एक दिव्य शिला है। मां यमुना के दर्शन और पूजा करने से पहले उस दिव्य शिला की पूजा की जाती है। इसी शिला के पास से गुफानुमा द्वार से जल की एक पतली धारा बहती है। जहाँ से युमनाजी अवतरित होती है।

यमुनोत्री मंदिर की परम्परा

जब पहाड़ बर्फ की सफेद चादरें ओढ़ लेते हैै। और भयंकर सर्दी पड़ने लगती है।तब उन जगहों पर रह पाना आसान नही।बर्फ के कारण जीवन ठहर जाता है। तो दीवाली के दिन यमुनाजी के स्वरूप को जानकी चट्टी के पास खरसाली गांव मे लाया जाता है।वहाँ पे माँ विराजित होती है।वहीं पे उनका नित्य पूजन किया जाता है।और फिर आखातीज को माँ यमुना जी वापिस यमुनोत्री लौटती है।आखातीज को मां यमुना जी चांदी की पालकी में सवार होकर शाही ठाठबाठ से खरसाली गांव से आती है। माँ यमुना जी की डोली के साथ बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी आते हैं। माँ की सवारी जब आती है तो यमुनोत्री धाम और मंदिर परिसर में पांव रखने की जगह नहीं होती। माताजी की डोली के आने पर ही मंदिर के कपाट खुलते हैं लेकिन दर्शन नहीं। पहले मंदिर में माताजी की पूजा अर्चना की जाती है और फिर आरती के साथ ही कपाट खुल जाते हैं। जब माँ यमुनाजी अंदर प्रवेश करती है तो समूची वादियों में यमुनाज की जय, यमुना महारानी की जय के जयकारे गूंजते हैं।

कल हम माँ यमुनाजी के बारे मे जानेगे उनके स्वरूप की महिमा का गुणगान करेंगे।

जारी है।——