| अनाम by Sri Shivananda, 2014 |


“अनाम” by Sri Shivananda, 2014
देह की इस गंध में अनाम सा–
इक रिश्ता है,
मन का मन से ।
सुवासित है जो यादो की महक से –
इसमें हँसी की खनखनाहट है,
माँ की ममता है,
रिश्तो की महक है ।

जो ले जाता है कभी कभी रिश्तो को
पाताल की गहराईयों में,
तो कभी पंहुचा देता है आकाश की उचाईयों मे
कभी जीवन की रिक्तता को भर देता है,
तो कभी एक भरपूर जीवन को-
शून्य में ही लटका देता है
सोचता है इक अनजान इस रिश्ते को नाम दे दूँ,
और मुक्त हो जाऊ सब बन्धनों से।।