| “ज्योतिपुंज” by Sri Shivananda, 2014 |


मेरे अंतर के गहन अंधकार में,
भोर की आहटलिए,
उदित हुआ है इक तारा ।
झिलमिल कर आह्वान किया है जिसने-
साथी चाँद सितारों को,
मेरे मन के प्रागण में अवतरित होने को ।

रोमांचित हो उठा हूँ में इस अनुभूति से,
जीवन की संध्या बेला –
झिलमिलाते सितारों और दुधिया चांदनी-
से नहाई हुई होगी ।

और अवसान के हासिए में कैद-
देह के बंधन को तोड़,
प्रकाश बिन्दू बनकर अनंत-
ज्योतिपुंज हो जाऊंगा में ।।