| भावों को अभी सवारों तुम |


” भावों को अभी सवारों तुम ” – by Sri Shivananda, 2014
“भावों को अभी सवारों तुम , इतने स्पष्ट उद्गार नही।
पीड़ा को अभी ठहरने दो, स्वप्न हुए साकार नही “।।

“जब पीड़ा में तुम , तुम में ही पीड़ा – एकाकार हो जायेगी “,
“यही सृष्टि , तुम्हे प्रियो – जीवन संगीत सुनायेगी “।।

“तब फुट पड़ेगें होठों से – हृद्यगुंज में दबे विचार।
“निर्झर से कल – कल कर – रास विभोर कर जायेंगें “।।

झूठी आशाओं के चक्कर में – मन क्यों इतना भरमाता है।
सपनो के भ्रम में मत भूलो – ये पल दो पल का नाता है।।

सागर से विखरे ज्यों मोती , लहरों के बीच मचलते हैं ,
एसे ही भरे पुरे जीवन में – हर साथी रोज बिछुड़ते हैं।।

मंथन के बीच मिलेगा क्या , यह जीवन सागर गहरा है ,
इतना तो तुम समझ लेना – हर सुख पर दुख का पहरा है।।