नवमाँ दिन–माँ यमुनाजी का इतिहास
कल हम यमुना जी पहुँचे।उनके मंदिर के दर्शन किऐ।मंदिर नित्य पूजा और वहाँ की परम्परा के बारे मे जाना।आज हम माँ यमुना जी के बारे मे जानते है।
“सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी। आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।
तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रता सर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम ।।
अर्थात जहाँ से यमुना नदी निकली है।वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!
सूर्य-पुत्री यमुनाजी
सूर्यतनया का शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री अर्थात् यमुना। यमुनाजी सूर्य की पुत्री हैं। सूर्य की पत्नियों छाया और संज्ञा से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। भ्रातृ द्वितीया भैयादूज पर यमुना के दर्शन और मथुरा में स्नान करने का विशेष महात्म्य है। यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला स्थान है। भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुनाजी भी हैं। यमुनाजी के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है।
यमुनोत्तरी में सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त हो जाते हैं।यह तीर्थ गढवाल हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसके शीर्ष पर बंदरपूंछ चोटी गंगोत्री के सामने स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर)है। जो कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नहीं है। क्योंकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। अत्यधिक संकरी-पतली युमना का जल शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। “असित मुनि” की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी।।जो भी भक्त गण यहाँ आकर स्नान करते हैं।माँ उनके सब कष्ट दूर करती हैं।हिमालय के बीच बसा ये मंदिर ये स्थान बहुत सुंदर है।हर जगह की अपनी ही एक शक्ति है एक बड़ा इतिहास और महिमा इस स्थान पर बैठ कर नदी वेग से उठने वाले ऊँनाद को हम सुन सकते है।आखें अपने आप बंद होने लगती हैै।जब आप ऐसे पावित्र स्थान पर जाते हैं।ये माँ यमुना जी का दर्शन और महिमा ।।।।
अब समय हो रहा है कि हम माँ का जयकारा बोल कर नीचे उतर चलें इस पवित्र पावन आलौकिक स्थान का दर्शन पाकर हम घन्य हुऐ।अब वक्त रहते हम नीचे उतरना शुरू किऐ।मन मे ढेर सारी यादें सुंदर प्रकृति का आंनद देते हुए रास्ते मे घोड़े खच्चर चलने की आवाज।उनके पैरों से खराब हुए रास्ते में फिसलन के भय से खूद को बचाते हुऐ।छोटे छोटे झरनों को पार कर।मन मे दर्शन का आंनद लिऐ।माँ गंगोत्री के दर्शन पाने की अभिलाषा मे चलते चलते हम उतकर अब आ पहुंने।जानकीचट्टी जहाँ से हमने पैदल यात्रा शुरू की थी।।अब यहाँ चाय, पानी विश्राम करके कल हम आगे की यात्रा करेंगे।यमुनाजी की जय।
–जारी है।