| Babaji's Poems |


| Keep Moving. चलते रहो |


 Babaji, July 2018
छोड़ो इन बातों में पड़ना मत
संसार मे बहुत सुख भरा पड़ा है॥
शायद अभी नही मिला।तो कल मिलेगा।
आज तक नही मिला है तो कल भी नही मिलेगा।

ये कौन कह सकता है,
खोदो थोड़ा और शायद जल स्त्रोत मिल जाये।
थोड़ी मेहनत और जल्दी थको मत।
मनजील ज्यादा दूर नही थोड़ा और चलो
इतना चले हो थोड़ा और चल लो॥
इतनी जिंदगी गवाई है। थोड़ी और दाव पर लगा के देख लो
और फिर नही होगा कुछ ऐसा नही है।

बाबाजी।।

| चक्रव्यूह |


“चक्रव्यूह”  Babaji, 2009

दामन जो तुमने अपना छुड़ा लिया,
एक दर्द की हुअन ने-
जख्म न जाने कितने कुरेद दिए,
तुम्हारा भी आज भ्रम टुटा-
तो पाया जीवन एक मिथ्या सपना है,

संबंधो के नाम पर-
लेन-देन व्यापार है, बालू की निशा-
की तरह सम्बन्ध बनते हैं,

बिगड़ते है और टूट जाते है ,
हर सम्बन्ध जो लगता था,
कभी अटूट सा-
पर टुटा जो आज सबसे नाता,
जीवन के इस मोड़ पर-
लगने लगा हर सम्बन्ध अर्थहीन बेगाना,
पूछता है मन एक प्रशन,
इस चक्व्रयुह में-
अभिन्यु बनकर कब तक लडेगा
ये जीवन ।।

| चलना ही जीवन है, 2014 |


‘सड़क के किनारे पड़े- पत्थर से मैंने पूछा’ ‘तुम पाषाण क्यों हो गये। क्यों रुक गये ये जीवन में ‘चलते रहते तो तुम्हारे भीतर लहराता जीवन, पाषाण न बनता ।।

| तलाश, 2014 |


हर युग में तलाशा जाता है सत्य को –
पर सत्य कही खो जाता है,
बार-बार दोहरया जाता है यहाँ झूठ ।

| अनाम by Sri Shivananda, 2014 |


देह की इस गंध में अनाम सा–
इक रिश्ता है,
मन का मन से ।
सुवासित है जो यादो की महक से –
इसमें हँसी की खनखनाहट है,
माँ की ममता है,
रिश्तो की महक है ।