| Babaji's Poems |


| भावों को अभी सवारों तुम |


” भावों को अभी सवारों तुम ” – by Sri Shivananda, 2014
“भावों को अभी सवारों तुम , इतने स्पष्ट उद्गार नही।
पीड़ा को अभी ठहरने दो, स्वप्न हुए साकार नही “।।

“जब पीड़ा में तुम , तुम में ही पीड़ा – एकाकार हो जायेगी “,
“यही सृष्टि , तुम्हे प्रियो – जीवन संगीत सुनायेगी “।।

“तब फुट पड़ेगें होठों से – हृद्यगुंज में दबे विचार।
“निर्झर से कल – कल कर – रास विभोर कर जायेंगें “।।

| प्रेम का रिश्ता” by Sri Shivananda, 2014 |


” प्रेम का रिश्ता” by Sri Shivananda, 2014
कभी माँ कभी पिता कभी भाई तो कभी बहन –
इन्ही नामो में उदित अंश हूँ ,
जनम के साथ जुड़ता और मरण के बाद भी जीवित
मैं एक अंग हूँ।।

समय के रथ पर सवार कभी मैं चलता रहा हु ,
तो कभी वस्तुओ का –
बोझ अहसहनीये होने से मैं रथ से गिर टूट जाता हूँ।।

| “भ्रम” by Sri Shivananda, 2014 |


“भ्रम” by Sri Shivananda, 2014
ढूढ़ रहा है यहाँ हर कोई एक ख़ुशी,
कोई अपने भीतर कोई अपने बाहर ।
खुशी मिली भी तो कयों पल भर में,
भ्रमित हो कर गायब हो जाती है ।
कभी खुशी के पल करीब से गुजर –
कर चले जाते है कही ।
और रह जाती है मन में इक तमन्ना –
अपनों से मिलकर भी खुशी- अधूरी रह जाती है ।

| “ज्योतिपुंज” by Sri Shivananda, 2014 |


“ज्योतिपुंज” by Sri Shivananda, 2014
मेरे अंतर के गहन अंधकार में,
भोर की आहटलिए,
उदित हुआ है इक तारा ।
झिलमिल कर आह्वान किया है जिसने-
साथी चाँद सितारों को,
मेरे मन के प्रागण में अवतरित होने को ।

| अर्थ ढूढ़ रहा हूँ |


अर्थ ढूढ़ रहा हूँ

करवट बदलते जीवन को-
एक पल रोक कर मैंने पूछा,
इस जीवन का अर्थ क्या है –
क्यों हम सुख दुःख महसूस करते है,
किस और बढ रहा है ये जीवन-
उफनती बहती नदी की धारा,
क्यों नहीं रूकती-