| Char Dham Yatra in Hindi |

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 49 |


उनचासवाँ दिन—-बद्रीनाथ की ओर

गोपीनाथ मंदिर

ब्रह्मदेव ने देवताओं से कहा कि भगवान शिव का पुत्र ही ताड़कासुर को मार सकता है।उसके बाद से सभी देवो ने भगवान शिव की आराधना करना आरम्भ कर दिया लेकिन तब भी शिवजी तपस्या से नहीं जागे , फिर भगवान शिव की तपस्या को समाप्त करने के लिए इंद्रदेव ने यह कार्य कामदेव को सौपा ताकि शिवजी की तपस्या समाप्त हो जाए और उनका विवाह देवी पार्वती से हो जाए और उनका पुत्र राक्षस “ताड़कासुर” का वध कर सके।जब कामदेव ने अपने काम तीरो से शिवजी पर प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी तथा शिवजी ने क्रोध में जब कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फैका , तो वो त्रिशूल उसी स्थान में गढ़ गया जहाँ पर वर्तमान समय में गोपीनाथ मंदिर स्थापित है । इसी कारण इस मंदिर की स्थापना हुई ।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 50 |


पचासवाँ दिन—बद्रीनाथ की ओर

गोपीनाथ मंदिर दर्शन के बाद अब हम आदि बद्री की ओर बढ़ेगें।यात्रा के अंतिम चरण के बहुत पास हैं अब हम।माँ गंगा यमुना से शिव का दर्शन पाकर अब हम नारायण जी का दर्शन पायेंगे। पंच प्रयाग,पंच केदार उसी तरह पंच बद्री का इतिहास हम जानेंगे।सबसे पहले आदि बद्री के इतिहास को जानते हैं। और नारायण जी का दर्शन पाते हैं।

आदि बद्री

आदि बद्री मंदिर।जिसका प्राचीन नाम नारायण मठ कहा जाता है।भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में भगवान विष्णु पहले तीन युगों में इसी मंदिर में रहे थे लेकिन कलयुग शुरू होने के साथ ही भगवान विष्णु बद्रीनाथ मे रहने लगे।इस मंदिर की स्थापना आठवीं से बारहवीं सदी के बीच हुई थी। आदि बद्री मंदिर सोलह मंदिरों का समूह था लेकिन अभी वर्तमान में केवल 14 ही मौजूद हैं।मंदिर समूह में मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। विष्णु के मंदिर के अतिरिक्त यहां श्री लक्ष्मीनारायण, अन्नपूर्णा, सूर्य सत्यनारायण, गणेश, पारब्रह्म, शिव, गरुड़, दुर्गा, जानकी आदि के मंदिर हैं।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 51 |


इकावनवाँ दिन–बद्रीनाथ की ओर

आदि बद्री मंदिर

आदि बद्री मंदिर का आकर पिरामिड रूप की तरह है। आदिबद्री मंदिर बद्री क्षेत्र में स्थित सप्तम बद्री मंदिरों में से एक है जो कि बद्री विशाल या बद्रीनाथ , आदि बद्री वृद्धा बद्री , ध्यान बद्री , अर्धा बद्री , भावीय बद्री और , योगिदान बदरी है । इस क्षेत्र में आदि गुरु शंकराचार्य सबसे पहले आये थे , तब से इस स्थान को “आदिबद्री” कहा जाने लगा।इस पवित्र स्थान के निकट तीर्थ कर्णप्रयाग है जो कि पंच प्रयाग में से एक धार्मिक प्रयाग है ।आदिबद्री मंदिर मुख्य रूप से भगवान विष्णु का मंदिर है तथा मंदिर में भगवान विष्णु की 3 फुट ऊँची मूर्ति की पूजा की जाती है इस मंदिर में एक मीटर ऊँची काली शालिग्राम की मूर्ति है , मंदिर प्रागण में भगवान शालिग्राम अपने चतुभूर्ज रूप में खड़े है। यह मूर्ति मंदिर में गर्भगृह के अन्दर ही स्थित है। और इसके निकट ही एक छोटा सा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ को समर्पित है।आदिबद्री मंदिर परिसर में अन्य देवी—देवताओं यथा भगवान सत्यनारायण, मां लक्ष्मी, भागवान राम—लक्ष्मण—सीता, मां काली, भगवान शिव, मां गौरी, मां अन्नपूर्णा, कुबेर ,भगवान शंकर एवं हनुमान जी के मंदिर भी स्थित हैं ।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 52 |


बाबनवाँ दिन –बद्रीनाथ की ओर

आदि बदरी दर्शन के बाद अब हम वृद्ध बदरी जी का दर्शन पायेंगे।

वृद्ध बद्री

उत्तराखंड के जोशीमठ से तक़रीबन 7 km पहले एक गांव अनिमठ पड़ता है। ये गांव मुख्य मार्ग से बस कुछ ही फासले पर नीचे बसा है। यह गांव चमोली जिले में है। यहां पर भगवान विष्णु की वृद्ध रूप में पूजा की जाती है। इस जगह पर देवऋषि नारदजी ने भगवान विष्णु के दर्शन के लिए तपस्या की थी। और भगवान विष्णु जी ने नारद जी को इसी स्थान पर प्रसन्न होकर  वृद्ध (बूढ़े) रूप में दर्शन दिए थे। इसलिए इस स्थान को वृद्ध बदरी कहा गया है। उत्तराखंड में कुल सात बदरी है जिनमे सबसे पुराने बद्री यही है। वृद्ध बद्री की मूर्ति जो श्याम रूप (काले रूप) में है ये मूर्ति बहुत प्राचीन है और भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा निर्मित है। ये मंदिर बद्रीनाथ धाम जी से भी पुराना माना गया है। इस मंदिर से अन्य कथा भी जुड़ी हुई है लेकिन उन्हें जानने के लिए यहाँ एक बार आपको आना ही पड़ेगा।

जारी है।—-

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 53 |


तरेपनवाँ दिन—-बद्रीनाथ की ओर

योगध्यान बद्री

योगध्यान बद्री मंदिर प्रदेश के पांडुकेश्वर में स्थित है। अलकनंदा नदी के गोविंद घाट के तट पर स्थित है।इस मंदिर का नाम पवित्र ‘सप्त-बद्री’ में आता है। योगध्यान बद्री मंदिर जोशीमठ से लगभग 22 किलोमीटर और हनुमान चट्टी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर की पवित्र यात्रा के दौरान यह मंदिर आता है।

योगध्यान बद्री मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति एक ध्यान की मुद्रा में स्थापित है। इसलिए इस धार्मिक स्थान को ‘योग-ध्यान बद्री’ के नाम से पहचाना जाता है। भगवान विष्णु की कांस्य की प्रतिमा को इस स्थान पर महाभारत के नायक पांच पांडवों के पिता राजा पांडु ने स्थापित किया था। यह वहीँ स्थान है जहां पर पांडव पैदा हुए थे और राजा पांडु ने इस स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया था। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीनाथ की उत्सव-मूर्ति के लिए योगध्यान बद्री को शीतकालीन निवास माना जाता है। इसके अलावा यहां कुबेर और भगवान विष्णु की उत्सव मूर्ति की पूजा भी की जाती है। यहां दक्षिण भारत के पुजारी मुख्य पुजारी के रूप में कार्य करते हैं।पांडुकेश्वर में ही पांडवों का जन्म हुआ था और उनके पिता पाण्डु का निधन भी इसी जगह पर हुआ था। महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद अपने चचेरे भाई कौरवों को मारने का पश्चाताप करने के लिए पांडव यहां पर आए थे। पांडवों ने अपने राज्य हस्तीनापुर को अपने पोते परीक्षित को सौंप दिया और हिमालय में तपस्या करने के लिए गए थे। यहां स्थित मंदिरों की बनावट देखने में केदारनाथ जी जैसी ही लगती है, किन्तु ये मंदिर आकार में काफी छोटे है। इस मंदिर के आसपास का इलाका मन्त्र मुग्ध कर देने वाला है।

इन स्थानों के दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाता है।बहुत जरूरी है,आपका भाव निर्मल पावन साफ होना चाहिए।निष्कपट भाव पर भगवान अपनी कृपा करते हैं।

जारी है।—-