| Char Dham Yatra in Hindi |

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 29 |


ऊनतीसवाँ दिन-केदारनाथ की ओर

ऊखीमठ दर्शन पाने के बाद ,मंदिर प्रांगण मे ही सब बैठकर घ्यान करने के बाद मै आपको ऊखीमठ के पास दो दिव्य स्थानों की कथा सुनाता हूँ।वो दिव्य स्थान है।मध्यमहेश्वर और देवरिया ताल और इन दोनो स्थानों के इतिहास को जाने,इनका आंनद लें।

मध्यमहेश्वर मंदिर

मध्यमहेश्वर मंदिर ,उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के मंसुना गांव में स्थित प्रसिद्ध एवम् धार्मिक मंदिर भगवान शिव को समर्पित हिंदू मंदिर है । यह मंदिर पंच केदार तीर्थ यात्रा में चौथा मंदिर है। मध्यमहेश्वर मंदिर को “मदमाहेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। मध्यमहेश्वर मंदिर में पूजा करने के बाद केदारनाथ, तुंगनाथ और रुद्रनाथ के मंदिरों का यात्रा की जाती हैं और साथ ही साथ कल्पेश्वर मंदिर का दौरा भी किया जाता है। इस मंदिर को पांडवो के द्वारा निर्मित किया गया है। भीम ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया ।मंदिर प्रांगण में “मध्य” या “बैल का पेट” या “नाभि” को भगवान शिवजी का दिव्य रूप माना जाता है । इस मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली से निर्मित है एवम् यह मंदिर एक घास से भरे क्षेत्र में स्थित है।आस पास का वातावरण इतना सुंदर है कि क्या कहूँ यहाँ की दिव्यता यहाँ पहुंचकर ही महसूस हो जाती है।वर्तमान मंदिर में,काले पत्थर से बना एक नाभि के आकार का शिव-लिंगम, इस पवित्र स्थान में स्थापित है। दो अन्य छोटे तीर्थ हैं, एक शिव व पार्वती के लिए और अन्य अर्धनारीश्वर को समर्पित है। जो आधा-शिव आधा-पार्वती का रूप है।मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर एक छोटा मन्दिर है , जिसके गर्भगृह में संगमरमर से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति है।इस मंदिर की रजत मूर्तियों को बर्फ पड़ने पर उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। मंदिर परिसर के पानी को अत्यधिक पवित्र माना जाता है इस मंदिर के पानी की कुछ बूंदों को स्नान के लिए पर्याप्त माना जाता है। इस मंदिर में पुजारी राज्य के कई अन्य मंदिरों के रूप में दक्षिण भारत के होते हैं | यह स्थान एक महत्वपूर्ण पवित्र तीर्थस्थल केंद्रों में से एक है जिसे पंचस्थली (पांच जगहों) सिद्धांत के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 30 |


तीसवाँ दिन—-केदारनाथ की ओर

मध्यमहेश्वर स्थान आलौकिक है।चारों तरफ हरे भरे पहाड़ो से घिरा हुआ,ये स्थान पे जब आप पहुँचते हो,तो वापिस दुनिया मे लौटकर आने का मन नही होता।इस स्थान की महिमा जानने के बाद अब हम एक और दिव्य स्थान की महिमा जानेगें।इस स्थान का नाम है।देवरिया ताल।

देवरिया ताल

गढ़वाल हिमालय की ओर जाने वाले सैलानियों के लिए देवरिया ताल भी एक दर्शनीय स्थल है। ऊखीमठ से पाली गांव होकर तथा दूसरे मस्तुराटाला से होकर सरी गांव तक टैक्सी से, फिर चार कि.मी. की चढ़ाई पैदल चढ़कर इन दो मार्गों से देवरिया ताल पहुंचा जा सकता है। देवरिया ताल पहुंचने पर नजर आता है प्रकृति का अपूर्व सौंदर्य। प्रकृति की यह कलात्मक सृजन क्षमता मन को मोह लेती है। जो पर्यटक पाली गांव से होकर देवरिया ताल जाते हैं उन्हें मार्ग में बांज, बुरास, काफल, खरसू और कुमकुम के पेड़ों से भरे खूबसूरत जंगल को देखकर रोमांच हो उठता है। दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि आजकल इस नैसर्गिक सुंदरता वाले ताल में गाद भरती जा रही है जिससे ताल के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है।यहाँ आप हिमालय के अनुपम सौंदर्य में अनेक दुर्लभ जीव-जंतुओं को मुक्त विचरण करते देख सहज आनंद की अनुभूति करते है।कटोरे के आकार वाला देवरिया ताल 400 मीटर लम्बा तथा 700 मीटर चौड़ा है। कस्तूरी मृग, भालू तथा लकड़बग्घा आदि वन्य पशु यहां बहुतायत से मिलते हैं।देवरिया ताल में स्नान करके पूजापाठ करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती हैं।प्रातः निकलते सूर्य के प्रकाश में चांदी के समान चमकते चौखम्बा शिखर का मनोरम दृश्य देखकर सुखद अनुभूति होती है।

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 31 |


इकतीसवाँ दिन—-केदारनाथ की ओर

आज हम अपने अगले पड़ाव गुप्तकाशी की ओर बढ़ रहे हैं।मदिरों के दर्शन पाकर और उनके पीछे छिपे इतिहास को जानकर सब आंनदित हो गये।सबके मन मे जल्दी जल्दी केदारधाम का दर्शन पाने की ईच्छा है।वही उत्साह उल्लास आने खींचता ले जा रहा है।आज हम बहुत सुदर और दिव्य स्थान की ओर बढ़ेगे। आईये जानते हैं। गुप्तकाशी का इतिहास।

गुप्तकाशी

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 32 |


बतीसवाँ दिन–केदारनाथ की ओर

गुप्तकाशी दर्शन पाने के बाद अब हम जायेंगे।त्रिजुगीनारायण ये स्थान का एक विशेष महत्व है।यहाँ का इतिहास जानकर सबका मन आंनद से भर जायेगा।इतना सुंदर इस स्थान का इतिहास, हम सब वहाँ पहुंचकर अब इस जगह का आंनद लेगें।गुप्तकाशी से डेढ़ घण्टे का सफर तय कर त्रिजुगीनारायण पहुँचे।पहाड़ो मे बसे इस सुंदर गांव का आंनद ही अलग है।और गांव की बीचों बीच बसा ये सुंदर मंदिर,जो सुंदर है।दिव्य है।आंनदप्रदायक है।इसके इतिहास को जानते है।।।

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 33 |


तेतीसवाँ दिन –केदारनाथ की ओर

त्रिजुगीनारायण

त्रिजुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी । यहां शिव पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने देवी पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था । जबकि ब्रह्मा जी ने शिव और पार्वती जी के विवाह में पुरोहित बने थे । उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था । विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है , जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है । विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं , जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहा जाता हैं । यहां पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है और इस मंदिर अधिकांश लोग त्रियुगीनारायण मंदिर के नाम से ही पुकारते हैं। इस मंदिर से भगवान शिव और देवी पार्वती का गहरा नाता है। यही वह जगह है जहां पर शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था क्योंकि निशानियों के तौर पर बहुत सी ऐसी चीजें यहां पर उपलब्ध हैं ।