चौसठवाँ दिन—-बद्रीनाथ दर्शन
बद्रीनाथ दर्शन
बद्रीनाथ मन्दिर अलकनन्दा नदी से ऊंचे धरातल पर निर्मित है, और इसका प्रवेश द्वार नदी की ओर देखता हुआ है। मन्दिर में तीन संरचनाएं है।गर्भगृह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप। मन्दिर का मुख पत्थर से बना है,और इसमें धनुषाकार खिड़कियाँ हैं। चौड़ी सीढ़ियों के माध्यम से मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंचा जा सकता है, जिसे सिंह द्वार कहा जाता है। यह एक लंबा धनुषाकार द्वार है।इस द्वार के शीर्ष पर तीन स्वर्ण कलश लगे हुए हैं, और छत के मध्य में एक विशाल घंटी लटकी हुई है। अंदर प्रवेश करते ही मंडप है। एक बड़ा, स्तम्भों से भरा हॉल जो गर्भगृह या मुख्य मन्दिर क्षेत्र की ओर जाता है। हॉल की दीवारों और स्तंभों को जटिल नक्काशी के साथ सजाया गया है। इस मंडप में बैठ कर श्रद्धालु विशेष पूजाएँ तथा आरती आदि करते हैं। सभा मंडप में ही मन्दिर के धर्माधिकारी, नायब रावल एवं वेदपाठी विद्वानों के बैठने का स्थान है। गर्भगृह की छत शंकुधारी आकार की है।
पैसठवाँ दिन–बद्रीनाथ दर्शन
बद्रीनाथ दर्शन
हिंदु धर्म के सभी मतों और सम्प्रदायों के अनुयायी बद्रीनाथ मन्दिर के दर्शन हेतु आते हैं। यहाँ काशी मठ,जीयर मठ ,उडुपी श्री कृष्ण मठ, और मंथ्रालयम श्री राघवेंद्र स्वामी मठ जैसे लगभग सभी प्रमुख मठवासी संस्थानों की शाखाएं और अतिथि विश्राम गृह हैं।
इन धामों के अतिरिक्त भारत के चार कोनों में चार मठ भी स्थित हैं और उनके समीप ही उनके परिचारक मन्दिर भी हैं। ये मन्दिर हैं: उत्तर में बद्रीनाथ में स्थित बद्रीनाथ मन्दिर, पूर्व में उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मन्दिर, पश्चिम में गुजरात के द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मन्दिर, और दक्षिण में कर्नाटक के शृंगेरी में स्थित श्री शारदा पीठम शृंगेरी।यद्यपि विचारधारा के आधार पर हिंदू धर्म मुख्यतः दो संप्रदायों, अर्थात् शैवों (भगवान शिव के उपासक) और वैष्णवों (भगवान विष्णु के उपासक), में विभाजित हैं, परन्तु फिर भी चार धाम तीर्थयात्रा में दोनों ही सम्प्रदायों के लोग खुलकर भाग लेते हैं।
छयासठवाँ दिन–बद्रीनाथ दर्शन
बद्रीनाथ मंदिर परंम्परा
बद्रीनाथ मन्दिर में आयोजित सबसे प्रमुख पर्व माता मूर्ति का मेला है, जो मां पृथ्वी पर गंगा नदी के आगमन की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान बद्रीनाथ की माता की पूजा की जाती है, जिन्होंने, पृथ्वी के प्राणियों के कल्याण के लिए नदी को बारह धाराओं में विभाजित कर दिया था। जिस स्थान पर यह नदी जब बही थी, वही आज बद्रीनाथ की पवित्र भूमि बन गई है। बद्री केदार यहाँ का एक अन्य प्रसिद्ध त्यौहार है, जो जून के महीने में बद्रीनाथ और केदारनाथ, दोनों मन्दिरों में मनाया जाता है। यह त्यौहार आठ दिनों तक चलता है, और इसमें आयोजित समारोह के दौरान देश-भर से आये कलाकार यहाँ प्रदर्शन करते हैं।
सम्पूर्ण
चार धाम दर्शन पार कर और अन्य कई मंदिरों के दर्शन से सबका जन्म सफल हुआ हिमालय के इन पुण्य स्थलों की शक्ति का दर्शन और कथा सुनने मात्र से कई पाप खत्म हो जाते हैं।मुझे इस कथा को लिखने मे बहुत आंनद की अनुभूति हुई।बद्रीनाथ के आस पास कई ऐसे स्थान हैं।जिन्हे देखा जा सकता है। “माणा” गांव जो की हिन्दुस्तान का अंतिम गाँव है।और वहीं से सतोपंथ मार्ग है।जिस मार्ग से पाण्डवों ने स्वर्ग का रास्ता चुना।और युधिष्ठर जी शरीर के साथ स्वर्ग गये।ये पूरे हिमालय पर्वत रहस्यों से भरे हुये।जहाँ का एक एक पर्वत तपोस्थली है।जहाँ कोने कोने मे तपस्वी बैठे हैं। बद्रीनाथ दर्शन और महिमा का आंनद लेकर अब हमें वापिस लौटना है।अब ये यात्रा कथा जल्दी ही सत्य दर्शन बनेगी जब हम सब मिलकर यात्रा का आंनद लेंगे।