| Char Dham Yatra in Hindi |

| Char Dham Yatra – towards Kedarnath, Day 34 |


चौतीसवाँ दिन—-केदारनाथ की ओर

त्रिजुगीनारायण दर्शन पाने के बाद आज हम मोक्षदायक धाम केदारनाथ की ओर जायेंगे।वो वक्त आ ही गया जब सब मंदिरों और प्रकृति का आंनद लेते लेते।हम केदार धाम पहुँचने ही वाले हैं।एक लम्बे इतंजार के बाद आज वो वक्त आ ही गया।आज सबके मन और चेहरे खुशी से खिले खिले नजर आ रहे हैं।जल्दी ही सुबह सब तैयार हैं हर हर महादेव भोले बाबा की जयकार के साथ सब गाड़ियों मे सवार हो गये।tपूरे माहौल मे इतना आंनद भरा हुआ है।हर कोई केदारनाथ के दर्शन पाने के लिए नाच रहा है।खुशी भरे इस माहौल मे महादेव भी भक्तों के हद्वय मे नाच ऱहा हैै।आज तो मिलन होना ही है।महादेव अपने बच्चों के इंतजार मे है।आज न किसी को भूख है ना प्यास।बस भोले नाथ के दर्शन का लालसा मे आगे बढ़ रहे हैं।हम सब आगे बढ़ गये।आज कुछ लोग हेलीकाप्टर से केदार पहुँचेगे।और कुछ बाबाजी के साथ गौरीकुण्ड मार्ग से पैदल यात्रा करेगें।2013 की त्रासदी के बाद अब ये यात्रा 18किमी हो गई।पहले गौरीकुण्ड से केदार तक 14किमी पैदल मार्ग था।तो अब वही यात्रा 18 कि मी हो गई है।पर महादेव के प्रेमियों को कोई नही रोक सकता।कठिनाई उनके जीवन को हिल्ला नही सकती।रास्ते के कितने भी मुशिकल क्यों न हूँ।उनको महादेव का प्रेम आगे खिंचता जाता है।मन मे आंनद लिऐ।हम गौरीकुण्ड आ पहुंचे।आईये गौरीकुण्ड के बारे मे जाने।

| Char Dham Yatra – Kedar Darshan, Day 35 |


पैतीसवाँ दिन—केदार दर्शन

पैदल मार्ग

गौरीकुण्ड दर्शन पाने के बाद,चाय नाश्ता करने के बाद लम्बी सांस भरकर मंदाकिनी नदी की हर हर करती आवाज ने सब में एक नई ऊर्जा भर दी।रास्तों को देख ऐसा प्रतीत होता है कि ये रास्ता कट जाये और महादेव से मिलन हो।किसी ने घोड़ा किसी ने पालकी तो किसी ने पैदल मार्ग चुन लिया,तो कुछ हैलीकाप्टर से निकल चले। भोलेबाबा की जयकार के साथ ऊँ नमः शिवाय गाते हुए।कदम आगे बढ़ने लगे।पूरे जोश के साथ भोलेनाथ का प्रेम अपनी ओर खींचने लगा।कठिन चढ़ाई और नदी के स्वर साथ आगे बढ़ने लगे।कही कही घोड़े खच्चर को रास्ता देने के लिए किनारे पर खड़े होकर प्रकृति के सौदर्य को निहारते निहारते आगे बढ़ रहे थे।रास्ते मे थकान होती है तो आराम करने के लिए टैंट मे बैठ सकते हैं।पूरे रास्ते मे भक्त भोले नाथ की जयकार गुजंती रहती हैै। जय जय कार से जो जोश आता हैै।वो रास्ते मे होने वाली थकान को दूर करते हैं।पहाड़ो के सुदंर नजारे और साथ साथ मे बम बम भोले,हर हर महादेव के जयकार उस माहौल को स्वर्ग बना देते हैं।जहाँ कोने कोने बस एक ही नाम,चाहे नदी का स्वर हो,या घोड़े खच्चरों की चलने आवाज,प्रकृति की शांति हो या हिमालय के ग्लेशियर हो।वहाँ बस एक ही नाद गुंजता है।हर हर महादेव,हर हर महादेव,हर हर महादेव।

| Char Dham Yatra – Kedarnath Darshan, Day 36 |


छतीसवाँ दिन—केदारनाथ दर्शन

आज वो दिन था,जब हम मोक्षधाम केदारनाथ के इतिहास को जानेगें।सुबह 4बजे मंदिर से आती मंत्र पूजा के स्वर और हिमालय से आती जमा देने वाली ठण्ड,जहाँ भी नजर दौड़ाओ,बस बर्फ ही बर्फ,हिमालय की ऊंची चोटियाँ।मंदिर के ऊपर लहराता झण्डा,ऊँ नमः शिवाय करता वहाँ का माहौल।सुबह की जमा देने वाली ठण्ड मे ही सब तैयार हो गये।हर कोई भोलेनाथ से मिलना चाहता,आखों में नींद ही कहाँ,जिन वादियों मे केवल भोलेनाथ की जयकार हो,जहाँ का कण-कण एक एक पत्थर जहाँ हर हर महादेव बोलता हो।वहाँ की पावन भूमि क्या नींद ,क्या थकान, क्या भूख।

| Char Dham Yatra – Kedar Darshan, Day 37 |


सेंतीसवाँ दिन–केदार दर्शन

केदारनाथ मंदिर

यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। नदी महाराज उस प्रांगण मे बैठे बहुत सुंदर दिखते है,हर समय महादेव की ओर मुख किये,हर समय उनकी सेवा और भक्ति मे लीन रहते हैं।

प्रात:काल में शिवलिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं।

| Char Dham Yatra – Kedar Darshan, Day 38 |


अठतीसवाँ दिन—केदार दर्शन

केदारनाथ मंदिर

चौरीबारी ग्लेशियर के कुंड से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर हिमालय की ऊँचाई पर अवस्थित है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ के निकट ही गांधी सरोवर व वासुकीताल हैं।मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं ।मंदिर के भीतर अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। शिवलिंग स्वयंभू है। सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान को घृत अर्पित कर बाँह भरकर मिलते हैं, मूर्ति चार हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ मोटी है। मंदिर में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ हैं। मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है।