चौवन दिन—बद्रीनाथ की ओर
भविष्य बद्री
भविष्य बद्री मंदिर एक हिन्दूओं का प्रसिद्ध एव प्राचीन मंदिर है। भविष्य बद्री मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के जोशीमठ से 17 किलोमीटर की दूरी पर गांव सुभाई में स्थित है। भविष्य बद्री मंदिर घने जंगल के बीच स्थित है। यहाँ तक केवल ट्रेगिंग द्वारा की जाया जा सकता है। यह धौली गंगा नदी के किनारे कैलाशमानसरोवर पर्वत के एक प्राचीन तीर्थ मार्ग पर स्थित है।
भविष्य मंदिर पंच बद्री (बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, आदि बद्री तथा वृद्ध बद्री) एवं सप्त बद्री तीर्थ में से एक है।इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था। उत्तराखंड क्षेत्र में कई मंदिरों के निर्माण के लिए आदि शंकराचार्य को श्रेय दिया जाता है। आदि शंकराचार्य द्वारा इन मंदिरों के निर्माण उद्देश्य देश के हर दूरदराज हिस्से में हिन्दू धर्म का प्रचार करना था। यहां मंदिर के पास एक शिला है, इस शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आधी आकृति नजर आती है। यहां भगवान बद्री विशाल शालिग्राम मूर्ति के रूप में विराजमान हैं।
पंचपन दिन–बद्रीनाथ की ओर
भविष्य बद्री की महिमा सुनने के बाद हम जोशीमठ पहुँचेगे।वहाँ पहुँचकर जोशीमठ का गुणगान करेंगे।वहाँ की महिमा जानेगें।
जोशीमठ
पांडुकेश्वर में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी। वासुदेव कत्यूरी ही कत्यूरी वंश का संस्थापक था।
छपनवाँ दिन—बद्रीनाथ की ओर
जोशीमठ के बारे मे जानने के बाद अब हम वहाँ स्थित नरसिह मंदिर का दर्शन करेंगे।हिमालय मे बसा ये गांव बहुत ही सुंदर है।और आध्यात्म से जुड़ा है।यहाँ के कण कण में हमारी संस्कृति की खुशबू महकती रहती है। अति पावन इस स्थान मे अब हम नरसिंह मदिर का दर्शन पोएंगे।
नरसिंह मंदिर
ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) क्षेत्र में स्थित ‘नृसिंह मंदिर’ भगवान विष्णु के 108 दिव्य देशमों में से एक है। नरसिंह मंदिर जोशीमठ का सबसे लोकप्रिय मंदिर है , यह मंदिर भगवान नरसिंह को समर्पित है जो कि भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे।सप्त बद्री में से एक होने के कारण इस मंदिर को नारसिंघ बद्री या नरसिम्हा बद्री भी कहा जाता है। नरसिंह मंदिर, संत बद्री नाथ का घर हुआ करता था । 1200वर्षों से भी पुराने इस मंदिर के विषय में यह कहा जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने स्वयं इस स्थान पर भगवान नरसिंह की शालिग्राम की स्थापना की थी । मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है, मूर्ति 10 इंच की है एवम् भगवान नृसिंह एक कमल पर विराजमान हैं।भगवान नरसिंह के साथ इस मंदिर में बद्रीनारायण , उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित है।
सतावनवाँ दिन—बद्रीनाथ की ओर
जोशीमठ नरसिंह नारायण दर्शन के बाद आज एक अदभूत आलौकिक स्वरूप का दर्शन करेंगे।जहाँ की परम्परा को सुनकर ही आनंद मिलता है।भगवान जहाँ वर्ष मे एक बार ही दर्शन देने आते हैं।उनके दर्शन मात्र से सब पाप घुल जाते हेै।ऐसे सुंदर स्थान की महिमा सुनाता हूँ।।
बंसी नारायण
उत्तराखंड देवी देवताओं की भूमि है। यहाँ के कण कण मे भगवान बसे है। और देवभूमि में एक मंदिर ऐसा भी है, जिसके कपाट साल में सिर्फ एक बार रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं।ये बात सच है और इस मंदिर में भगवान बंसी नारायण चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस 10 फुट ऊंचे इस मंदिर में साल में सिर्फ एक बार ही पूजा की जाती है।इस दिन सभी बहनें भगवान बंसी नारायण को राखी बांधती हैं।
अठानवाँ दिन–बद्रीनाथ की ओर
बंसी नारायण जी का दर्शन करके अब हम कल्पेश्वर मंदिर पायेंगे ।तो चलो चलते हैं।भगवान कल्पेश्वर का दर्शन करने।उनकी महिमा का गुणगान तुम्हे सुनाता हूँ।
कल्पेश्वर मंदिर
कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक एवम् पवित्र स्थलों में से एक है।कल्पेश्वर मंदिर “उर्गम घाटी” में चमोली जिले में स्थित है।इस मंदिर परिसर में “जटा” या हिन्दू धर्म के मान्य त्रिदेव में से एक “भगवान शिव जी” के उलझे हुए बालो की पूजा की जाती है।अर्थात् भगवान की जटाओं की पूजा की जाती है।यह मंदिर “पंचकेदार” तीर्थ यात्रा में पांचवे स्थान पर आता है।कल्पेश्वर का मुख्य मंदिर भक्तों के मध्य ‘अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है।