| Char Dham Yatra in Hindi |

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 44 |


चौतालीसवाँ दिन—–वद्रीनाथ की ओर

तुंगनाथ के बाद हम चंद्रशिला आ पहुँचे।चद्रशिला के लिए चढ़ाई करके आना पड़ता है जो लोग चलने के शौकीन हैं।वो लोग यहाँ तक पैदल चलकर आ सकते हैं आइये जानते हैं इस सुंदर स्थान के बारे में।

चन्द्रशिला का इतिहास

भगवान शिव को शक्ति का अपार भंडार है।इस कारण से ही संसार में युगों-युगों से उनकी पूजा होती आ रही है।जीवन व मृत्यु से परे भगवान शिव जहां संसार में विनाशक के रूप में पूजनीय हैं, वहीं उन्हें जीवनदाता भी माना गया है। शिवजी द्वारा चंद्रमा के प्राणों की रक्षा करने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में विराजित करने की कथा सुनाता हूं।

जब समुद्र मंथन किया गया था तो उसमें से हलाहल विष भी निकला था। जिससे पूरी सृष्टि की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले उस विष का पान किया। मगर विष पीने के बाद उनका शरीर विष के प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। यह देखकर चंद्रमा ने उनसे प्रार्थना की वह उन्हें माथे पर धारण कर अपने शरीर को शीतलता प्रदान करें। ऐसे विष का प्रभाव भी कुछ कम हो जाए।इसके लिए पहले तो शिव नहीं मानें, क्योंकि चंद्रमा श्वेत और शीतल होने के कारण उस विष की तीव्रता सहन नहीं कर पाते। लेकिन अन्य देवताओं के निवेदन के बाद शिव इसके लिए मान गए और उन्‍होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। तभी से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजित हैं और पूरी सृष्टि को अपनी शीतलता प्रदान कर रहे हैं।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 45 |


पैतालीसवाँ दिन –बद्रीनाथ की ओर

तुंगनाथ और चंद्रशिला दर्शन के बाद अब हम वापिस चौपता आ गए,प्रकृति के अदभूत सौंदर्य दर्शन के बाद अब हम चौपता से 4 घंटे का सफर तय कर देवी माँ के मंदिर का दर्शन पायेंगे।जानते है माँ अनसूइया के मंदिर का इतिहास।

अनसूइया मन्दिर

सती माता अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के मण्डल नामक स्थान में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है, साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 46 |


छतालीसवाँ दिन—-बद्रीनाथ की ओर

अनसूइया मंदिर

जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था। देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को विवश कर दिया। ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने शर्त रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके शर्त के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व रूप में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 47 |


सेतालीसवाँ दिन—-बद्रीनाथ की ओर

अनसूइया देवी मन्दिर दर्शन पाने के बाद मै आपको एक और स्थान का इतिहास सुनाता हूँ।उस स्थान पर पहुँचना थोड़ा कठिन है,लेकिन हम उस स्थान का कथा आंनद लेगे।तो शुरू करते है।अत्रि मुनि गुफा का इतिहास लेकिन उससे पहले अत्रि मुनि के बारे मे जानते हैं।

अत्रि मुनि

अत्री एक वैदिक ऋषि, यह ब्रमहा जी के मानस पुत्रों में से एक थे। चंद्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ये तीन पुत्र थे।अग्नि, इंद्र और हिंदू धर्म के अन्य वैदिक देवताओं को बड़ी संख्या में भजन लिखने का श्रेय दिया जाता है। अत्री हिंदू परंपरा में सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों) में से एक है, और सबसे अधिक ऋग्वेद में इसका उल्लेख है।अयोध्या नरेश श्रीराम उनके वनवास कालमे भार्या सीता तथा बंधू लक्ष्मण के साथ अत्री ऋषी के आश्रम चित्रकुट मे गये थे। अत्री ऋषी सती अनुसया के पती थे । सती अनुसया सोलह सतियोंमेसे एक थी । जिन्होंने अपने तपोबलसे ब्रम्हा,विष्णु,महेशको छोटे बच्चोंमें परिवर्तित कर दिया था।वही तीनों देवों ने माता अनुसूया को वरदान दिया था।

| Char Dham Yatra – towards Badrinath, Day 48 |


अड़तालीसवाँ दिन—बद्रीनाथ की ओर

अत्रि मुनि गुफा दर्शन के बाद,अब हम गोपीनाथ मंदिर जायेंगे।

गोपीनाथ मंदिर

गोपीनाथ मंदिर उत्तराखण्ड के चमोली क्षेत्र के गोपेश्वर नामक शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है।भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के प्रमुख रमणीय स्थलों मे से एक है । गोपीनाथ मंदिर कत्युरी शासकों द्वारा 9 वीं और 11 वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था । गोपीनाथ मंदिर एक अद्भुत गुंबद और एक पवित्र स्थान है। जिसमें 24 दरवाजे हैं । यहाँ एक स्वयंभू आत्म-प्रकट शिव लिंग जिसे गोपीनाथ और नंदी के नाम से देखा जा सकता है।मंदिर परिसर में आंशिक रूप से टूटी हुई मूर्तियां अन्य मंदिरों के अस्तित्व को दर्शाती हैं। इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं एवं भगवान भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं , गोपीनाथ मंदिर , केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है । मंदिर पर मिले भिन्न प्रकार के पुरातत्व एवं शिलायें इस बात को दर्शाते है कि यह मन्दिर कितना पौराणिक है।मन्दिर के आस पास , माँ दुर्गा , श्री गणेश एवं श्री हनुमान जी के मन्दिर हैं , जो भक्तों को और भी आनन्दमय एवं श्रद्धा से परिपूर्ण करते है।भगवान गोपीनाथ जी के इस मन्दिर का दर्शन चार धाम यात्रा करने वाले श्रद्धालू चमोली से केदारनाथ यात्रा के दौरान गोपेश्वर में कर सकते है । भव्य शिलाओं से बने इस मंदिर का निर्माण और वास्तुकला का स्वरूप सभी को आकर्षित करता है। पौराणिक महत्व के लिए गोपीनाथ मंदिर शैव मत के साधकों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। गोपेश्वर आने वाले तीर्थ यात्री गोपीनाथ मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते है।